श्लोक: भवान्भीष्मश्च कर्णश्च कृपश्च समितिञ्जयः। अश्वत्थामा विकर्णश्च सौमदत्तिस्तथैव च॥ ८॥ " पिछले श्लोक 7 में हमने सीखा कि अहंकार और शक्ति का दुरुपयोग न करें। सच्ची विजय आत्मसमर्पण और धर्म के मार्ग पर चलने से मिलती है।" अब हम श्लोक 8 से 10 तक मैं समझने की कोशिश करेंगे कि ये श्लोक हमें क्या सिखाता है और सब कुछ हम हिंदी में ही समझने की कोशिश करते हैं भगवद गीता - अध्याय 1, श्लोक 8 "आप (भीष्म पितामह), कर्ण और संग्राम में विजय प्राप्त करने वाले कृपाचार्य, अश्वत्थामा, विकर्ण और सौमदत्त (भूरिश्रवा) भी हमारी ओर से युद्ध में उपस्थित हैं।" "धृतराष्ट्र के प्रश्न का उत्तर देते हुए दुर्योधन अपने गुरु द्रोणाचार्य को अपनी सेना के प्रमुख योद्धाओं का परिचय दे रहा है। भीष्म पितामह का परिचय "भीष्म पितामह, कुरु वंश के सबसे बड़े संरक्षक और महान योद्धा हैं। वे इस युद्ध में कौरवों के सेनापति हैं।" "कर्ण, सूर्यपुत्र और महान योद्धा हैं, जो दुर्योधन के प्रिय मित्र और अंग देश के राजा हैं। वे अर्जुन के समकक्ष योद्धा माने जाते हैं।" "कृपाचार्य, हस्तिनापुर के कुलगुरु और युद्ध में अजेय योद्धा हैं। वे समस्त शास्त्रों और अस्त्रों के ज्ञाता हैं।" "अश्वत्थामा, द्रोणाचार्य के पुत्र और अमरत्व का वरदान प्राप्त योद्धा हैं। उनका क्रोध विनाशकारी हो सकता है।" "विकर्ण, धर्मपरायण और निष्पक्ष विचार वाले कौरव पुत्र हैं। वहीं, सौमदत्ति, भूरिश्रवा के नाम से प्रसिद्ध, युद्ध कौशल में निपुण हैं।") "दुर्योधन इन सभी महारथियों की उपस्थिति से गर्वित है और अपने विजय को लेकर आश्वस्त हो रहा है।" तो प्रिये भक्तो कहने का अर्थ ये है: "इस श्लोक में दुर्योधन अपने सेनापति और प्रमुख योद्धाओं का नाम लेते हुए द्रोणाचार्य को आश्वस्त कर रहा है कि उनकी सेना अजेय है। लेकिन उसे यह अहंकार ज्ञात नहीं है कि धर्म की रक्षा के लिए स्वयं भगवान श्रीकृष्ण पांडवों के साथ हैं "परन्तु, धर्म की रक्षा के लिए श्रीकृष्ण स्वयं अर्जुन के सारथी बने हैं। युद्ध का परिणाम धर्म के पक्ष में ही होगा।"