श्लोक: अयनेषु च सर्वेषु यथाभागमवस्थिताः। भीष्ममेवाभिरक्षन्तु भवन्तः सर्व एव हि॥ भाव अर्थ "तुम सब अपने-अपने मोर्चों पर व्यवस्थित रहो और विशेष रूप से पितामह भीष्म की रक्षा करो।" "महाभारत युद्ध का मैदान तैयार हो चुका था। दोनों पक्षों की सेनाएं अपने-अपने स्थान पर खड़ी थीं। इस क्षण दुर्योधन ने अपनी सेना को एक महत्वपूर्ण आदेश दिया।" "इस श्लोक में दुर्योधन ने अपनी सेना को निर्देश दिया कि वे अपने-अपने स्थान पर स्थित रहें और सबसे अधिक ध्यान पितामह भीष्म की सुरक्षा पर दें। भीष्म पितामह कौरव सेना के सेनापति थे और उनकी उपस्थिति दुर्योधन के लिए विजय की उम्मीद थी।" "दुर्योधन अच्छी तरह जानता था कि भीष्म पितामह की उपस्थिति कौरवों के आत्मविश्वास और युद्ध शक्ति को बढ़ाती है। यदि भीष्म सुरक्षित रहते, तो कौरवों की विजय निश्चित मानी जाती। इसलिए, उसने अपनी पूरी सेना को यह आदेश दिया कि वे अपने स्थान पर रहकर पूरी शक्ति के साथ भीष्म की रक्षा करें।" "इस श्लोक से हमें यह शिक्षा मिलती है कि जब भी हम किसी महत्वपूर्ण कार्य में लगे हों, तो हमें अपनी रक्षा और मार्गदर्शक का सम्मान और सुरक्षा करनी चाहिए। ठीक उसी प्रकार, जीवन के युद्ध में धर्म और सत्यरूपी भीष्म की रक्षा करना ही हमारी विजय का मार्ग है।"