श्लोक: अन्ये च बहवः शूरा मदर्थे त्यक्तजीविताः। नानाशस्त्रप्रहरणाः सर्वे युद्धविशारदाः॥ ९॥ अनुवाद: "इसके अतिरिक्त भी, मेरे लिए अपने जीवन का बलिदान करने को तत्पर, अनेक शूरवीर योद्धा यहाँ उपस्थित हैं, जो विविध प्रकार के शस्त्रों से सुसज्जित और युद्धकला में निपुण हैं।" "दुर्योधन अपने गुरु द्रोणाचार्य को कौरव सेना की शक्ति और समर्पण का आभास कराते हुए आगे कहता है..." "इसके अलावा, मेरी सेना में अनेक पराक्रमी योद्धा हैं, जो मेरे लिए अपने जीवन का बलिदान करने को तैयार हैं।" "ये शूरवीर सिर्फ योद्धा ही नहीं, बल्कि मेरे प्रति पूरी तरह समर्पित हैं और किसी भी स्थिति में प्राण त्यागने के लिए तैयार हैं।" "ये सभी योद्धा विभिन्न प्रकार के शस्त्रों से सुसज्जित हैं और युद्ध की कला में निपुण हैं।" "युद्धकला में ये सभी विशेषज्ञ हैं, जिन्हें विभिन्न प्रकार की सैन्य रणनीतियों का ज्ञान है।" तो प्रिये भक्तो कहने का अर्थ ये है: "दुर्योधन इस श्लोक में द्रोणाचार्य को आश्वस्त कर रहा है कि उसकी सेना में ऐसे वीर योद्धा हैं, जो किसी भी स्थिति में उसके लिए प्राण त्यागने को तैयार हैं और युद्ध की कला में प्रवीण हैं। लेकिन वह यह भूल रहा है कि धर्म की विजय सुनिश्चित है और भगवान श्रीकृष्ण स्वयं पांडवों के पक्ष में हैं।" "परंतु, धर्म की रक्षा के लिए स्वयं भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन के सारथी बने हैं। धर्म की रक्षा के लिए विजय अवश्यंभावी है।"