“जय श्री कृष्ण!”

स्वागत है आपका भगवद गीता श्लोक श्रृंखला में। आज हम अध्याय 1, श्लोक 2 पर चर्चा करेंगे, जो महाभारत के युद्ध की शुरुआत को दर्शाता है। यह श्लोक उस पल को वर्णित करता है जब दुर्योधन ने अपने गुरु भीष्म पितामह से बातचीत की थी।

सबसे पहले इस श्लोक का पाठ करें:

श्लोक 2
"सञ्जय उवाच |
दृष्ट्वा तु पाण्डवानीकं व्यूढं दुर्योधनस्तदा |
आचार्यमुपसंगम्य राजा वचनमब्रवीत् ||"

अनुवाद:
“सञ्जय ने कहा: ‘फिर, दुर्योधन ने पाण्डवों की सेना को व्यवस्थित होते देखा और गुरु भीष्म के पास जाकर यह वचन कहा।’”

Explanation

सञ्जय ने धृतराष्ट्र से कहा कि जब दुर्योधन ने पाण्डवों की सेना को अपने सामने देखा, तो वह चिंतित हुआ और तुरंत भीष्म पितामह के पास गया।

दुर्योधन का मन पाण्डवों की शक्ति देखकर घबराया हुआ था। उसे लग रहा था कि इस युद्ध में कौरवों की जीत कठिन होगी। इस संदर्भ में वह अपने गुरु, भीष्म पितामह से मार्गदर्शन लेने गया।

यह श्लोक युद्ध की मनोवैज्ञानिक स्थिति को दर्शाता है, जहां युद्ध का मैदान एक मानसिक संघर्ष भी बन जाता है।

Moral & Spiritual Lesson

दुर्योधन का भय हमें यह सिखाता है कि जब हम किसी संघर्ष या चुनौती का सामना करते हैं, तो हमें डर और चिंताओं का सामना करना पड़ता है।

यह भी दिखाता है कि अधिकारियों और मार्गदर्शकों से सलाह लेना महत्वपूर्ण है, क्योंकि वे हमें सही दिशा दिखा सकते हैं, जैसे दुर्योधन ने गुरु भीष्म से मार्गदर्शन लिया।

हर चुनौती में हमें आत्मविश्वास और सही मार्गदर्शन की आवश्यकता होती है, ताकि हम अपने लक्ष्य की ओर बढ़ सकें।