“जय श्री कृष्ण!”
स्वागत है आपका भगवद गीता श्लोक श्रृंखला में। आज हम चर्चा करेंगे अध्याय 1, श्लोक 1 पर। यह श्लोक गीता की शुरुआत है और यह हमारे जीवन के संघर्षों और कर्मों को समझने का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।
सबसे पहले हम इस पवित्र श्लोक का पाठ करते हैं:
श्लोक 1
"धृतराष्ट्र उवाच |
धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे समवेताः युयुत्सवः |
मामकाः पाण्डवाश्चैव किमकुर्वत सञ्जय ||"
अनुवाद:
“न्होंने क्या किया?”धृतराष्ट्र ने पूछा: धर्मभूमि कुरुक्षेत्र में दोनों पक्षों के योद्धा, पाण्डव और कौरव, युद्ध के लिए एकत्र हुए हैं। सञ्जय, बताइये, उ
Explanation
इस श्लोक में धृतराष्ट्र अपने मंत्री सञ्जय से पूछते हैं कि कुरुक्षेत्र में पाण्डव और कौरव युद्ध के लिए एकत्र हुए हैं, तो क्या हुआ?
धर्मक्षेत्रे यानी “धर्मभूमि” का संकेत है कि यह भूमि जहाँ धर्म और अधर्म का युद्ध होने वाला है।
यह श्लोक महाभारत के युद्ध के आरंभ की ओर इशारा करता है, जहाँ कौरव और पाण्डव दोनों के बीच एक विशाल युद्ध होने वाला है।
धृतराष्ट्र के लिए यह युद्ध केवल उनके परिवार का संघर्ष था, लेकिन गीता में यह संघर्ष सम्पूर्ण मानवता और धर्म का प्रतीक बन गया।
Spiritual Lesson
धर्मक्षेत्र का अर्थ केवल भौतिक भूमि से नहीं, बल्कि हमारी मानसिकता से भी जुड़ा हुआ है। यह उस स्थान या स्थिति को संदर्भित करता है, जहां जीवन के बड़े निर्णय लिए जाते हैं और जहां अच्छाई और बुराई का मुकाबला होता है।
हम सभी के जीवन में कुरुक्षेत्र है, जहाँ हमें जीवन के बड़े फैसले लेने होते हैं और जहाँ हमें धर्म और अधर्म का चुनाव करना होता है।
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