“जय श्री कृष्ण!”


स्वागत है आपका भगवद गीता श्लोक श्रृंखला में। आज हम अध्यक्ष 1, श्लोक 3 पर चर्चा करेंगे। इस श्लोक में दुर्योधन ने अपने गुरु भीष्म पितामह से पाण्डवों की सेना को देखकर अपनी चिंता व्यक्त की है।

सबसे पहले इस श्लोक का पाठ करें:

श्लोक 3

"दुर्योधन उवाच | पश्यैतां पाण्डुपुत्राणामाचार्य महतीं चमूम् |
व्यूढं द्रुपदपुत्रेण तव शिष्येण धीमता ||"

अनुवाद:
“दुर्योधन ने कहा: ‘गुरु, आप देखिए, ये पाण्डवों के पुत्रों की सेना, जो द्रुपद के पुत्र द्रष्टद्युम्न ने महान ढंग से व्यवस्थित की है, कितनी शक्तिशाली है।’”

Explanation

दुर्योधन ने अपने गुरु भीष्म पितामह से कहा कि पाण्डवों की सेना इतनी मजबूती से संगठित की गई है कि वह किसी बड़े संकट से कम नहीं है।

द्रुपदपुत्र से तात्पर्य है द्रष्टद्युम्न, जो पाण्डवों के पक्ष में युद्ध करने के लिए तैयार है और उसने सेना की योजनाओं को बहुत ही सटीक तरीके से तैयार किया है।

इस श्लोक में दुर्योधन यह महसूस कर रहा था कि पाण्डवों की सेना अब और भी मजबूत हो गई है और यह युद्ध पहले से कहीं अधिक चुनौतीपूर्ण होगा।

Moral & Spiritual Lesson

यह श्लोक हमें यह सिखाता है कि संगठन और योजना का महत्व जीवन के हर पहलु में अत्यधिक होता है।

जैसे द्रुपद के पुत्र ने पाण्डवों की सेना को सही तरीके से व्यवस्थित किया, वैसे ही हमें अपने जीवन के संघर्षों का सामना करने से पहले उचित योजना और संगठन करना चाहिए।

कठिन समय में विश्वास और सही रणनीति जीवन को आसान बना सकती है।