“जय श्री कृष्ण!”


स्वागत है आपका भगवद गीता श्लोक श्रृंखला में। आज हम अध्यक्ष 1, श्लोक 4 पर चर्चा करेंगे, जो पाण्डवों और कौरवों की सेनाओं के पराक्रम को दर्शाता है। इस श्लोक में धृतराष्ट्र अपने मंत्री सञ्जय से पाण्डवों की सेना के पराक्रमी योद्धाओं के बारे में पूछते हैं।

सबसे पहले इस श्लोक का पाठ करें:

श्लोक 4
"धृतराष्ट्र उवाच | तत्र शूरा महेष्वासा भीमार्जुनसमा युधि |
युयुधानो द्रुपदपुत्रेण सामितिं तेन युद्धम् ||"

अनुवाद:
“धृतराष्ट्र ने कहा: ‘वहां पाण्डवों के ऐसे शूरवीर योद्धा हैं, जो भीम और अर्जुन के समान युद्ध में साहसिक और श्रेष्ठ हैं। द्रुपद के पुत्र ने उन सभी को युद्ध में पराजित किया है।’”

Explanation

धृतराष्ट्र ने सञ्जय से पूछा कि पाण्डवों के पास कितने शूरवीर योद्धा हैं। वह यह जानने के लिए उत्सुक थे कि पाण्डवों के पास कौन-कौन से महान योद्धा हैं।

इस श्लोक में उल्लेखित भीम और अर्जुन के मुकाबले पाण्डवों के अन्य योद्धाओं की शक्ति को दिखाया गया है।

द्रुपदपुत्र, यानी द्रष्टद्युम्न, जो पाण्डवों का एक महान सहयोगी था, ने उन योद्धाओं को युद्ध में समाहित किया था, यानी उन्हें संगठित किया था।

यहां शूरा महेष्वासा का अर्थ है वे योद्धा जो युद्ध के मैदान में अत्यधिक वीरता दिखाने के लिए प्रसिद्ध हैं, और उनकी ताकत अर्जुन और भीम के समान है।

Moral & Spiritual Lesson

यह श्लोक हमें यह सिखाता है कि जीवन में सच्ची वीरता केवल युद्ध में ही नहीं, बल्कि हमारे संघर्षों और सकारात्मक निर्णयों में भी दिखनी चाहिए।

जब हम किसी लक्ष्य की ओर बढ़ते हैं, तो सही संगठन और समर्थ नेतृत्व से हम अपने लक्ष्य को प्राप्त कर सकते हैं, जैसे पाण्डवों ने अपने शूरवीरों के साथ मिलकर सफलता की ओर कदम बढ़ाया।

हमें भी धैर्य, साहस, और सटीक योजना के साथ अपने जीवन के कठिन संघर्षों का सामना करना चाहिए।