“जय श्री कृष्ण!”

स्वागत है आपका भगवद गीता श्लोक श्रृंखला में। आज हम अध्यक्ष 1, श्लोक 10 पर चर्चा करेंगे, जो युद्ध के मैदान में वीरता और शूरवीरों के पराक्रम को दर्शाता है। यह श्लोक युद्ध के मैदान में पाण्डवों और कौरवों के शूरवीरों की मानसिक स्थिति और उनके साहस को उजागर करता है।

सबसे पहले इस श्लोक का पाठ करें:

श्लोक
"अन्ये च बहवो वीर मा युधि प्राणमक्षयम् |
उत्थिताः शूरमङ्गस्थे युध्यमानाः समन्ततः ||"

अनुवाद:
“इसके अलावा, बहुत से अन्य वीर योद्धा हैं जो अपनी जान को जोखिम में डालकर युद्ध में कूद पड़े हैं और सभी दिशाओं से युद्ध कर रहे हैं।”

Explanation

इस श्लोक में दुर्योधन ने भीष्म पितामह से कहा कि केवल पाण्डवों के प्रमुख योद्धा ही नहीं, बल्कि बहुत से अन्य वीर योद्धा भी हैं, जो अपने प्राणों की आहुति देने के लिए तैयार हैं।

ये योद्धा युद्ध में सभी दिशाओं से अपनी पूरी ताकत के साथ लड़ रहे हैं, जो यह दर्शाता है कि युद्ध में केवल शारीरिक शक्ति ही नहीं, बल्कि मानसिक दृढ़ता और समर्पण भी महत्वपूर्ण है।

"प्राणमक्षयम्" का अर्थ है कि वे सभी अपने प्राणों की आहुति देने के लिए तैयार हैं, क्योंकि उनका लक्ष्य केवल विजय प्राप्त करना है।

इस श्लोक में यह भी दिखाया गया है कि युद्ध में न केवल शरीर बल्कि आत्मबल और धैर्य का भी योगदान होता है।

Moral & Spiritual Lesson

यह श्लोक हमें यह सिखाता है कि सच्चा समर्पण तब होता है जब हम किसी कार्य को पूर्ण निष्ठा और धैर्य के साथ करते हैं, चाहे वह कार्य कितना भी कठिन क्यों न हो।

जीवन में कभी भी किसी भी संघर्ष का सामना करते समय हमें अपना आत्मबल और निष्ठा बनाए रखना चाहिए, क्योंकि सच्ची वीरता केवल बाहरी शक्ति से नहीं, बल्कि आंतरिक शक्ति से आती है।

हमें अपनी वचनबद्धता और साहस को हर चुनौती में बनाए रखना चाहिए, तभी हम जीवन की कठिन परिस्थितियों से विजयी हो सकते हैं।