श्लोक:
तस्य संजनयन्हर्षं कुरुवृद्धः पितामहः।
सिंहनादं विनद्योच्चैः शङ्खं दध्मौ प्रतापवान्॥
भाव अर्थ
"तब कुरुवंश के वृद्ध पितामह भीष्म ने दुर्योधन को प्रसन्न करने के लिए सिंह के समान गर्जना करते हुए ऊँची आवाज में शंख बजाया।"
"महाभारत का युद्ध आरंभ होने वाला था। दोनों पक्षों की सेनाएं आमने-सामने खड़ी थीं। इस क्षण में कौरव पक्ष को आत्मविश्वास और साहस देने के लिए पितामह भीष्म ने एक शक्तिशाली संकेत दिया।"
"जब दुर्योधन ने अपनी सेना को भीष्म पितामह की रक्षा का आदेश दिया, तो भीष्म ने दुर्योधन का उत्साह बढ़ाने के लिए सिंह के समान गर्जना करते हुए अपने शंख का नाद किया। यह नाद इतना प्रचंड था कि युद्धभूमि में उपस्थित सभी योद्धाओं का मनोबल बढ़ गया।"
"भीष्म पितामह का शंखनाद केवल युद्ध की शुरुआत का संकेत नहीं था, बल्कि यह कौरव पक्ष के लिए आत्मविश्वास और साहस का प्रतीक भी था।
सिंह की गर्जना के समान उनकी शंख ध्वनि ने कौरव सेना में जोश भर दिया और उन्हें यह विश्वास दिलाया कि वे एक महान योद्धा के नेतृत्व में युद्ध कर रहे हैं।"
"इस श्लोक से हमें यह शिक्षा मिलती है कि जीवन में जब भी कोई बड़ी चुनौती सामने हो, तो आत्मविश्वास और साहस का संचार आवश्यक है। जैसे भीष्म ने दुर्योधन को हर्षित करने के लिए शंखनाद किया,
वैसे ही हमें भी जीवन में कठिन परिस्थितियों में आत्मविश्वास बनाए रखना चाहिए।"