"कौन थे वे पराक्रमी योद्धा जो महाभारत के युद्ध में धर्म की रक्षा के लिए पांडवों के पक्ष में लड़े? 

आइए जानते हैं भगवद गीता के पहले अध्याय के छठे श्लोक में!"

कुरुक्षेत्र में योद्धाओं का समूह, तेजस्वी चेहरे के साथ युद्ध की तैयारी में थे

"भगवद गीता के इस श्लोक में कहा गया है—

श्लोक

धृष्टकेतुश्चेकितानः काशिराजश्च वीर्यवान् |

पुरुजित्कुन्तिभोजश्च शैब्यश्च नरपुंगवः || 6||


"इस सेना में धृष्टकेतु, चेकितान, वीर्यवान काशिराज, पुरुजित, कुन्तिभोज और श्रेष्ठ पुरुष शैब्य भी हैं।"

"इस श्लोक में दुर्योधन गुरु द्रोण को यह बता रहा है कि पांडवों के पक्ष में कई पराक्रमी योद्धा उपस्थित हैं। आइए, इन वीरों को जानते हैं—"

धृष्ट



केतु – चेदि देश का राजा और शिशुपाल का पुत्र, जो पांडवों के प्रति निष्ठावान था।

चेकितान – वृष्णि वंश का महान योद्धा और श्रीकृष्ण का प्रिय मित्र।

काशिराज – काशी नरेश, जो युद्ध में अद्वितीय वीरता के लिए प्रसिद्ध थे।

पुरुजित और कुन्तिभोज – ये दोनों राजा पांडवों की माता कुन्ती के संबंधी थे और उन्होंने धर्म की रक्षा के लिए युद्ध किया।

शैब्य – एक वृद्ध लेकिन पराक्रमी योद्धा, जो धर्म के लिए समर्पित थे।

"ये सभी योद्धा केवल बाहुबल से ही नहीं, बल्कि अपने धर्म और कर्तव्य के प्रति निष्ठा से भी महान थे।"

"यह श्लोक हमें सिखाता है कि धर्मयुद्ध में केवल बलशाली होना ही पर्याप्त नहीं है, बल्कि सत्य और न्याय के लिए खड़ा होना ही वास्तविक वीरता है।"

"आज के जीवन में भी, यदि हम सही उद्देश्य के लिए संघर्ष करते हैं और धर्म के मार्ग पर अडिग रहते हैं, तो सफलता निश्चित है।"